लोकनाथ तिवारी, ,अबतक खबर,३१ अक्टूबर :: तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी की सरकार के खिलाफ बंगाल में सियासी चक्रव्यूह रचा जा रहा है। इस चक्रव्यूह में शामिल होनेवाले महारथियों का नाम और चेहरा भी सामने आने लगा है। सूत्रों के अनुसार भारतीय जनता पार्टी येन केन प्रकारेण बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू कर चुनाव कराना चाहती है. मोर्चाबंदी शुरू हो गयी है। राष्ट्रपति शासन लागू करने के लिए बीजेपी नेतृत्व के समक्ष तीन विकल्प हैं। पहला धारा 356 का उपयोग कर राष्ट्रपति शासन लागू करना। राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने तो इस दिशा में पहल भी शुरू कर दी है। दिल्ली में गृह मंत्री अमित शाह से मिलकर उन्होंने पश्चिम बंगाल की कानून व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति का ब्यौरा दिया और कहा कि बंगाल में लोकतंत्र और संविधान की अनदेखी की जा रही है। वहां आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती। विपक्षी दल के कार्यकर्ताओं की हत्या पर प्रशासन मूकदर्शक बना रहता है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के समर्थन से ऐसा किया जा रहा है।

अगर केंद्र सरकार बंगाल में बिगड़ती कानून-व्यवस्था की आड़ में राष्ट्रपति शासन लागू करती है तो ममता के प्रति लोगों में सहानुभूति जगेगी जो बीजेपी हर्गिज नहीं चाहेगी। हालांकि संसद में तो अमित शाह कह चुके हैं कि अब तक 132 बार धारा 356 का उपयोग हुआ और 93 बार कांग्रेस ने इसका प्रयोग किया है। हमें उनसे लोकतंत्र का पाठ नहीं पढ़ना।

दूसरा तरीका है बंगाल में 27 मई 2021 तक चुनाव न हों तो राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने की स्थिति स्वतः उत्पन्न हो जायेगी। ममता बनर्जी ऐसी स्थिति आने ही नहीं देंगी।

ऐसे में तीसरा और सबसे कारगर तरीका है अगर ममता बनर्जी विधानसभा में अल्पमत में आ जायें। ऐसा तभी हो सकता है जब टीएमसी के विधायकों का एक बड़ा हिस्सा विरोध करने लगे। इसकी गुंजाइश बनती दिख रही है। ममता बनर्जी की सरकार में कद्दावर मंत्री और जननेता माने जानेवाले शुभेंदु अधिकारी के बारे में खबर आ रही है कि वे टीएमसी से अलग हो सकते हैं। अलग होकर वे या तो बीजेपी में प्रत्यक्ष तोर पर शामिल हो सकते हैं या अपना नया प्लेटफॉर्म बना कर खुद को नयी राजनीतिक दिशा दे सकते हैं। ये दोनों बातें निर्भर करती हैं, शुभेंदु के समर्थन में टीएमसी से अलग होनेवाले विधायकों की संख्या पर।

बीजेपी के एक सूत्र ने तो यहां तक दावा किया कि 15 नवंबर के बाद शुभेंदु कभी भी बीजेपी में शामिल हो सकते हैं। यह भी तय है कि बीजेपी के खेमे में वह अकेले नहीं जायेंगे। उनके साथ विधायकों की एक जमात भी होगी।

गौरतलब है कि बंगाल में वाममोर्चा सरकार के ताबूत में अंतिम कील ठोकनेवाले नंदीग्राम आंदोलन की शुरुआत करनेवाले शुभेंदु अधिकारी ही थे। ममता की सियासत में खास दर्जा रखने वाले परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी पिछले 3-4 महीने से एक भी कैबिनेट या प्रशासनिक बैठक में शिरकत नहीं किये है।

शुभेंदु अधिकारी ने 28 अक्टूबर को ‘आमरा दादार अनुगामी’ के बैनर तले कई जनसभाओं में शामिल हुए हैं। यह मंच शुभेंदु समर्थकों ने बनाया है। पूर्व मिदनापुर ज़िले के कोलाघाट में में आयोजित एक सभा में उन्होंने कहा कि उन्हें लोगों की सेवा करने के लिए किसी ओहदे की जरूरत नहीं है। उस सभा में न तो कहीं ममता बनर्जी के नाम का ज़िक्र था, और न ही सभा में कहीं टीएमसी का कोई झंडा लगाया गया था। हालाँकि मंच से शुभेन्दु अधिकारीने तृणमूल युवासभापति का नाम लिये वगैर कहा की वे राजनीति मैकक पायदान चढ़कर आगे बढे हैं किसी और की तरह पैरासूट से राजनीति में नहीं उतरे हैं।

इस सभा के बाद से अटकलें शुरू हो गई हैं कि शुभेंदु अधिकारी अलग पार्टी बनाने जा रहे हैं। उधर बीजेपी की ओर से भी दावे किये जा रहे हैं कि शुभेंदु ने उससे संपर्क किया है।

दिल्ली से बीजेपी के एक शीर्ष नेता ने से कहा कि अधिकारी पार्टी के ‘लगातार संपर्क’ में बने हुए हैं, तृणमूल कांग्रेस के भी कुछ बड़े नेताओं ने स्वीकार किया है कि शुभेंदु के हालिया फैसले पार्टी विरोधी नहीं है लेकिन अनुशासनहीनता की श्रेणी में आते हैं। एक सीनियर टीएमसी लीडर ने कहा, ‘शुभेंदु पार्टी अनुशासन तोड़ रहे हैं। वो पार्टी और सरकार के कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो रहे हैं, लेकिन नियमित रूप से अपनी जन सभाएं कर रहे हैं।

टीएमसी के वरिष्ठ नेता और राज्य के मंत्री तापस रॉय ने कहा कि यह पार्टी का अंदरूनी मामला है। हमारी नेता ममता बनर्जी इस पर नजर रख रही है। हालांकि शुभेंदु अधिकारी ने अभी तक इस संदर्भ में कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन उनके पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ टीएमसी नेता व सांसद शिशिर अधिकारी ने कहा कि वह और उनका बेटा अभी भी ममता बनर्जी के साथ हैं। कुछ कूपमंडूक टाइप के लोग अपने निहित स्वार्थों की ख़ातिर ऐसी अफवाहें फैला रहे हैं। उन्होंने कहा कि आगे की भविष्यवाणी नहीं कर सकते, लेकिन अभी हम सब ममता बनर्जी के साथ हैं। पार्टी कार्यक्रम छोड़कर एक नए संगठन के बैनर तले, सभाएं करने के उनके बेटे के फैसले पर उन्होंने कहा कि शुभेंदु एक अनुभवी राजनेता हैं और वो अपने फैसले ख़ुद लेते हैं। उनके अपने चाहने वाले हैं और उन्हीं लोगों ने एक संगठन खड़ा किया है।

शुभेंदु अधिकारी तृणमूल कांग्रेस के उन गिने चुने नेताओँ में है, जिनका अपना एक ठोस जनाधार है। वह पूर्व मिदनापुर, पश्चिम मिदनापुर, पुरूलिया मुर्शिदाबाद व बांकुड़ा ज़िलों में संगठन को मजबूत किये हैं। अधिकारी इन ज़िलों में पार्टी प्रभारी थे, जिनमें कुल मिलाकर दस लोकसभा सीटें, और 78 विधान सभा क्षेत्र आते हैं, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद, उन्हें हटा दिया गया था।

शुभेंदु तृणमूल कांग्रेस युवा के पूर्व अध्यक्ष रहे अधिकारी, दो बार के सांसद और मंत्री हैं. लेकिन 2014 में एक बड़ा फेरबदल करते हुए, ममता बनर्जी ने अपने भतीजे अभिषेक को युवा का प्रमुख बना दिया था। तृणमूल कांग्रेस में शुभेंदु अकेले ऐसे नेता हैं, जिनका अपना एक जनाधार है, और जो ममता बनर्जी के नाम के बिना चुनाव जीत सकते हैं। टीएमसी सूत्रों के अनुसार शुभेंदु को मनाने की कोशिशें तेज हो गयी हैं।

अब प्रश्न ये उठता है की क्या शुभेंदु टीएमसी में ही बने रहेंगा?क्या शुभेंदु को साधकर बीजेपी ममता के खिलाफ चक्रव्यूह रच पायेगी यह तो आनेवाला समय ही बतायेगा।